पिटारा भानुमती का

अगस्त 6, 2006

हिरोशिमा की पीड़ा

Filed under: अश्रेणीबद्ध — अमित @ 2:53 अपराह्न

आज हिरोशिमा नरसंहार को ६१ वर्ष पूरे हो गये हैं. मानवता के नाम पर कलंक था वह दिन. उस दिन स्कूल में पढ़ने वाला शिगेरु अपना लंच न ले सका और तीन वर्षीय मासूम शिनिची को उसके रिक्शे के साथ ही उसके पिता ने दफ़्न किया. क्या महान उपलब्धि रही उन मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की! क्या बुद्धि इतनी बलवती हो सकती है भावनाओं पर?

वाजपेयी जी की कविता ‘हिरोशिमा की पीड़ा’ याद आती है:

किसी रात को
मेरी नींद आचानक उचट जाती है
आंख खुल जाती है
मैं सोचने लगता हूं कि
जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का
आविष्कार किया था
वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण
नरसंहार के समाचार सुनकर
रात को कैसे सोये होंगे?
क्या उन्हें एक क्षण के लिये सही
ये अनुभूति नहीं हुई कि
उनके हाथों जो कुछ हुआ
अच्छा नहीं हुआ!
यदि हुई, तो वक़्त उन्हें कटघरे में खड़ा नहीं करेगा
किन्तु यदि नहीं हुई तो इतिहास उन्हें
कभी माफ़ नहीं करेगा!

– अटल बिहारी वाजपेयी (साभार: मेरी इक्यावन कवितायें)

एक संयुक्त बयान में बम गिराने वाले विमानचालक दल के तीन जीवित सदस्यों ने कहा है कि उन्हें अपने किये का कोई पछ्तावा नहीं. खैर वे तो मोहरे थे, लेकिन इंसान भी तो थे.

ईश्वर ने दुनियां की रचना की, और इसका अंत होगा हमारे हाथों. कैसी विडम्बना है यह?

सम्बंधित कड़ियां: बी.बी.सी. हिन्दी पर हिरोशिमा त्रासदी के ६० वर्ष, Hiroshima Peace Site

3 टिप्पणियां »

  1. या दिलाने के लिए आपका धन्यवाद – कवीता बहुत अच्छी रही

    टिप्पणी द्वारा SHUAIB — अगस्त 6, 2006 @ 5:54 अपराह्न | प्रतिक्रिया

  2. * याद

    टिप्पणी द्वारा SHUAIB — अगस्त 6, 2006 @ 5:55 अपराह्न | प्रतिक्रिया

  3. मार्मिक रचनाएं हैं. शिगेरू और शिनिची की यादें ताज़ा हो आईं. कभी पढ़ा था.

    टिप्पणी द्वारा नीरज दीवान — अगस्त 6, 2006 @ 7:53 अपराह्न | प्रतिक्रिया


RSS feed for comments on this post. TrackBack URI

टिप्पणी करे

वर्डप्रेस (WordPress.com) पर एक स्वतंत्र वेबसाइट या ब्लॉग बनाएँ .